खोला हुआ खुशनुमा बादल हु मै,
मै नदी का तेज बहाव हु,
मै कैद नहीं हु ऐ अलमदद,
मै परिन्दे की उड़ान हु।
चंगेज़ का जहाज़ हु,
मै चील का शिकार हु,
मेरे शौख सौ जहान से,
मै अल्लाह की पुकार हु।
तारीफे भी तेरी,
लतीफ़े भी तेरी,
मै एक नदी का फ़ुहार हु,
मै दर्द हु, मै दवा भी
मै बारिश भी, मै छाता भी,
मै ही तो हु इस जहान मे,
मै शाम की अजान मे,
मै कतरा कतरा बह गया
एक बाढ़ सा उजाड़ मै।
संगीत मै, तालीम भी,
रियाज़ भी मै, अजान भी,
मै तो अनहद नाद हु,
मै तानसेन का राग भी।
मै रेल की रफ्तार हु,
मै चींटी का कतार हु,
मै लहर हु समंदर की,
मै शेर का दहाड़ हू।
उलझी हुई गुत्थी भी हु,
सहज सरल सवाल भी,
मै प्रेम हु, मै भाव हु,
मै ज्ञान का भंडार हु,
अंधेरा हु मै रात सा,
सूरज सा जलता आग भी।
मै जुगनू का टिमटिम भी हु,
मै आग का लपेट भी,
मै प्रारंभ हु, अखंड हु,
मै टेढ़ी-मेढ़ी राह भी।
मै अधूरा हु, कोई कहानी सा,
मै पूरी लिखी किताब भी।
मै जन्म हु, मै अंत भी,
मै एक नारी का श्रृंगार भी
मै कोई पड़ा पत्थर भी हु,
हातों से फिसलता रेत भी।
“मै तो ना तू हु,
ना तेरी जहान हु,
न तेरे ही राह का मात हु,
“वजूद” का भूखा हु मै,
मै अपना ही गुमान हु।”
© कमलेश बिस्वास